वन विभाग बनाएगा झरने-तालाब वाले जंगल, टूरिज्म से करोड़ों कमाने का रास्ता खुलेगा | Forest Department will create forests with waterfalls and ponds, tourism will open the way to earn crores

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जयपुर9 मिनट पहलेलेखक: उपेंद्र शर्मा

क्या आप जानते हैं, 1970-75 तक राजस्थान के 21 जिलों के जंगलों में टाइगर की दहाड़ सुनाई देती थी? वन विभाग उस दौर को फिर दोहराएगा। जल्द ही राजस्थान के 10 से ज्यादा जिलों में टाइगर की दहाड़ सुनाई देगी। इसके लिए उन जिलों में जंगल बसाए जाएंगे, जहां 50 साल पहले तक टाइगर थे।

इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। धौलपुर के जंगलों को हाल ही केन्द्र सरकार ने टाइगर सेंचुरी के लिए प्रारम्भिक (सैद्धांतिक) मंजूरी दे दी है। नेशनल टाइगर कन्जर्वेंशन अथोरिटी (एनटीसीए-दिल्ली) ने इस मंजूरी के बारे में वन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव शिखर अग्रवाल को सूचना भेज दी है।

रणथंभौर के बाद सरिस्का (अलवर) में फलता-फूलता बाघों का कुनबा। सरिस्का 2005 में बाघ विहीन हो गया था, लेकिन रणथम्भौर से वहां भेजे टाइगर धीरे-धीरे पनपते रहे। आज वहां करीब 25 टाइगर हैं।

रणथंभौर के बाद सरिस्का (अलवर) में फलता-फूलता बाघों का कुनबा। सरिस्का 2005 में बाघ विहीन हो गया था, लेकिन रणथम्भौर से वहां भेजे टाइगर धीरे-धीरे पनपते रहे। आज वहां करीब 25 टाइगर हैं।

धौलपुर के बाद अगला नम्बर कुम्भलगढ़ (राजसमंद) के जंगलों का है, जिसे टाइगर सेंचुरी के लिए केन्द्र सरकार की मंजूरी जल्द ही मिल सकती है। वर्तमान में राजस्थान में रणथम्भौर (सवाईमाधोपुर), मुकुंदरा (कोटा), विषधारी (बूंदी), सरिस्का (अलवर) के जंगलों में टाइगर देखे जा रहे हैं। फिलहाल टाइगर इन्हीं चार जंगलों में दिखाई देते हैं। टाइगर का पांचवां घर (जंगल) धौलपुर-करौली और छठा घर राजसमंद के जंगलों में बनेगा।

राजस्थान के हैड ऑफ फॉरेस्ट डीएन पांडेय ने भास्कर को बताया कि धौलपुर के लिए टाइगर रिजर्व की सैद्धांतिक मंजूरी मिल गई है। कुछ और जगहों के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।

राजस्थान के हैड ऑफ फॉरेस्ट डीएन पांडेय ने भास्कर को बताया कि धौलपुर के लिए टाइगर रिजर्व की सैद्धांतिक मंजूरी मिल गई है। कुछ और जगहों के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं।

प्रदेश के हैड ऑफ फॉरेस्ट (हॉफ) डीएन पांडेय का कहना है कि टाइगर के लिए जंगल में भोजन-पानी का होना बहुत जरूरी है। रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट के तहत हम प्रदेश के जंगलों में यह कोशिश कर रहे हैं कि उनकी उन सब खूबियों को वापस लौटाया जाए, जिसके लिए जंगल जाने जाते हैं।

कहां संभव है टाइगर का घर बनना

वन विभाग रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट के तहत हर उस जिले के जंगलों में टाइगर को फिर से बसाना चाहता है, जहां 50-60 साल पहले टाइगर रहा करते थे। धीरे-धीरे शिकार, खनन, हाइवे निर्माण और अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण टाइगर केवल एक ही जिले सवाईमाधोपुर (रणथम्भौर टाइगर रिजर्व) तक ही सीमित हो गए थे। अब राजस्थान में उन जंगलों पर भी विभाग निरंतर स्टडी कर रहा है, जहां टाइगर को पुन: बसाया जाना संभव हो सके।

  • भीलवाड़ा-चित्तौड़गढ़, बूंदी जिलों के सीमावर्ती क्षेत्र (मेनाल-रावतभाटा-बिजौलिया, भीमलत) के जंगलों में 1975 तक टाइगर देखे गए हैं। इन जंगलों में अब भी टाइगर के लिए संभावनाएं मौजूद हैं।
  • जयपुर (झालाना-रामगढ़) में भी 60 साल पहले तक टाइगर की मौजूदगी थी। हाल के वर्षों में भी कई बार सरिस्का (अलवर) से टाइगर रामगढ़ (जयपुर) की तरफ मूवमेंट करता दिखाई दिया है।
  • बांसवाड़ा-झालावाड़-प्रतापगढ़-धरियावद के जंगल आज भी राजस्थान के सबसे घने जंगलों में से एक हैं, जहां कभी टाइगर रहा करते थे। यहां भी टाइगर के लिए पर्याप्त संभावनाएं मौजूद हैं।
  • टॉडगढ़-रावली (अजमेर-राजसमंद-पाली) के जंगलों में भी पानी और भोजन पर्याप्त रूप से उपलब्ध होने के चलते टाइगर के लिए खासी संभावनाएं मौजूद हैं।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

केन्द्र सरकार की नेशनल टाइगर कन्जर्वेशन अथोरिटी (एनटीसीए) के प्रतिनिधि और राजस्थान वन्यजीव संरक्षण बोर्ड की स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य दौलत सिंह शक्तावत (रणथम्भौर) ने भास्कर को बताया कि राजस्थान के 15 से 20 जिलों में आजादी के समय टाइगर मौजूद थे। आज फिर से ऐसा प्रयास हो रहा है कि टाइगर को राजस्थान के उन सभी जिलों में पुन: बसाया जाए जहां वो परम्परागत रूप से रहता आया है। यह जंगल और पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा कदम है। एक ही परेशानी सबसे बड़ी है वो है टाइगर के लिए पर्याप्त भोजन और पानी की व्यवस्था। इसके लिए सरकारी और विभाग के स्तर पर कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए।

इस बाघ को ब्रोकन टेल टाइगर नाम दिया गया था। यह टाइगर जुलाई-2003 में रणथम्भौर से मूवमेंट करता हुआ मुकुंदरा (कोटा) के जंगलों में पहुंच गया था, जहां 15 जुलाई 2003 को एक ट्रेन से टकरा जाने से इसकी मृत्यु हो गई थी। यह फोटो वन्यजीव विशेषज्ञ रविंद्र सिंह तोमर ने तब खींची थी।

इस बाघ को ब्रोकन टेल टाइगर नाम दिया गया था। यह टाइगर जुलाई-2003 में रणथम्भौर से मूवमेंट करता हुआ मुकुंदरा (कोटा) के जंगलों में पहुंच गया था, जहां 15 जुलाई 2003 को एक ट्रेन से टकरा जाने से इसकी मृत्यु हो गई थी। यह फोटो वन्यजीव विशेषज्ञ रविंद्र सिंह तोमर ने तब खींची थी।

पूर्व मानद वन्यजीव प्रतिपालक रविंद्र सिंह तोमर (कोटा) ने भास्कर को बताया कि टाइगर जहां होता है, वहां जंगल भी सुरक्षित रहता है और सरकारी प्रोजेक्ट्स पर पैसे का निवेश भी खूब होता है। ऐसे में टाइगर अपने पीछे-पीछे करोड़ों रुपयों के रोजगार के अवसर हजारों लोगों के लिए लेकर आता है। राजस्थान में आज चार वन क्षेत्रों में टाइगर है, अगर यह 10-12 जगहों पर हो जाए तो हजारों लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

1970-75 तक राजस्थान के 21 जिलों में टाइगर थे

राजस्थान के 33 जिलों में से करीब 12 जिलों को रेगिस्तानी भू-भाग के कारण छोड़ दिया जाए तो शेष 21 जिलों के जंगलों में टाइगर की मौजूदगी थी। 1970 से 1975 के दौर में जयपुर, अलवर, सीकर, झुंझनूं, धौलपुर, करौली, दौसा, भरतपुर, सवाईमाधोपुर, बूंदी, कोटा, झालावाड़, बारां, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, अजमेर, पाली, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमंद, प्रतापगढ़ जिलों में टाइगर की मौजूदगी थी। 1995 से 2005 के बीच राजस्थान के केवल दो ही जिलों अलवर (सरिस्का) और सवाईमाधोपुर (रणथम्भौर) के जंगलों में ही टाइगर बचे थे। इनमें से भी वर्ष 2004-05 में अलवर (सरिस्का) से भी टाइगर पूरी तरह से खत्म हो गए और केवल सवाईमाधोपुर में ही टाइगर बचे रह गए।

वर्ष 2010 के बाद से अब तक बीते 12-13 वर्षों के प्रयासों में रणथम्भौर से टाइगर ले-जाकर सरिस्का, मुकुंदरा और विषधारी के जंगलों को फिर से आबाद किया गया है। अब जल्द ही धौलपुर-करौली और कुम्भलगढ़ (राजसमंद) के जंगलों में भी टाइगर दिखाई देंगे।

क्या है रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट

रिवाइल्डिंग का अर्थ है जंगल को फिर से जंगल बनाना। जंगलों को ठीक वही पहचान वापस देना, जिसके लिए वे प्रसिद्ध रहे हैं। इसमें पेड़-पौधे, पक्षी और वन्यजीव शामिल हैं। टाइगर चूंकि सबसे मशहूर और भारत के जंगलों का चौथा सबसे बड़ा जीव (हाथी, गेंडे और सिंह के बाद) व राजस्थान का एकमात्र सबसे बड़ा जीव है, तो यह रिवाइल्डिंग प्रोजेक्ट की सबसे अहम कड़ी है।

रणथम्भौर स्थित जंगल में टाइगर। यह जंगल प्रदेश के सभी बाघों की मातृभूमि माना जाता है। प्रदेश के दूसरे जंगलों में टाइगर यहीं से मूवमेंट करते हैं।

रणथम्भौर स्थित जंगल में टाइगर। यह जंगल प्रदेश के सभी बाघों की मातृभूमि माना जाता है। प्रदेश के दूसरे जंगलों में टाइगर यहीं से मूवमेंट करते हैं।

क्या हैं चुनौतियां

टाइगर को किसी जंगल में पुन: बसाना कोई आसान काम नहीं। किसी जंगल में ले जाकर किसी टाइगर को छोड़ देने मात्र से वहां उसकी बस्ती (कॉलोनी) तैयार नहीं हो सकती। टाइगर के लिए पर्याप्त प्रे-बेस (भोजन के रूप में हिरण, सुअर, खरगोश, मोर, नीलगाय का होना जरूरी है) आवश्यक है।

जंगल में पानी के लिए तालाब, बहती नदी, झरने जैसे स्रोत भी होने चाहिए, ताकि टाइगर भूख-प्यास के चलते मानव बस्तियों की तरफ रुख ना करे। उन्हें या उनके मवेशियों को अपना शिकार ना बनाएं। जिन जंगलों में टाइगर बसाए जाने हैं, वहां वन विभाग खुद भी दूसरे जंगलों से हिरणों या नीलगाय को वहां ले जाकर छोड़ता है। जैसे हाल ही मुकुंदरा में किया गया था।

राजस्थान को मिलेंगे ये फायदे

  • पर्यटन के क्षेत्र में जबरदस्त बूम आएगा। लोगों के पास टाइगर देखने के लिए रणथम्भौर-सरिस्का के अलावा भी बहुत सी जगहें होंगी
  • गाइड, होटल, ट्यूर-टैक्सी, फूड, फिल्म शूटिंग से जुडे़ रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी होगी
  • जंगल और पर्यावरण संरक्षण के लिए टाइगर का होना बहुत जरूरी माना जाता है
  • किसी एक ही जंगल में सारे टाइगर होने से कभी कोई बीमारी फैलने पर उन्हें बचाया जाना मुश्किल हो जाता है। अलग-अलग जगहों पर रहने से किसी बीमारी का असर एक ही जंगल के टाइगर पर होगा न कि सभी पर।
  • ब्रीडिंग फास्ट होगी क्योंकि ज्यादा पार्टनर मिल सकेंगे

अब 100 से ज्यादा टाइगर हैं राजस्थान में

पिछले 60-70 सालों में यह पहला मौका है जब राजस्थान के जंगलों में टाइगर की संख्या 100 को पार कर गई है। इनमें से लगभग 78 टाइगर अकेले रणथम्भौर में हैं। सरिस्का में 25 टाइगर हैं। रामगढ़ विषधारी में 2 और मुकुंदरा में 2 टाइगर मौजूद हैं। देश भर में 2968 टाइगर (वर्ष 2021 की गणना के हिसाब से) हैं। हाल ही एक टाइगर (T-116) का मूवमेंट धौलपुर के जंगलों में देखा गया है। इससे पहले करौली के जंगलों में भी टाइगर का मूवमेंट दिखता रहा है।

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