पुण्य प्रबल होने पर मिलता जिनवाणी श्रवण का अवसर, प्रमादवश मौका न गंवाए-इन्दुप्रभाजी म.सा.

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पुण्य प्रबल होने पर मिलता जिनवाणी श्रवण का अवसर, प्रमादवश मौका न गंवाए-इन्दुप्रभाजी म.सा.

सांसारिक सुख भोगने की लालसा में मत छोड़ो देवगति पाने का अवसर-समीक्षाप्रभाजी म.सा.

भीलवाड़ा, 30 अक्टूबर। चातुर्मास सम्पन्न होने के दिन नजदीक आ रहे है। जिनवाणी सुनने का जो अवसर प्राप्त हुआ है उसे प्रमादवश खोना नहीं चाहिए। जिनवाणी श्रवण करने पर विचारों की शुद्धि के साथ आत्मशुद्धि भी होती है। दिवाली पूर्व भगवान महावीर की अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र सुनने का जो अवसर मिला है उसका लाभ हर श्रावक-श्राविका को अवश्य लेना चाहिए। ये विचार भीलवाड़ा के चन्द्रशेखर आजादनगर स्थित रूप रजत विहार में सोमवार को मरूधरा मणि महासाध्वी श्रीजैनमतिजी म.सा. की सुशिष्या वात्सल्यमूर्ति महासाध्वी इन्दुप्रभाजी म.सा. ने नियमित चातुर्मासिक प्रवचन में व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि जिनवाणी सुनने का सौभाग्य पुण्यवानी प्रबल होने पर ही मिलता है। जिनके पाप कर्म प्रबल होते है वह धर्मस्थान के निकट रहने या संत-साध्वियों का आगमन होने पर भी जिनवाणी श्रवण कर कर्म निर्जरा के सुअवसर का लाभ नहीं उठा पाते है। उन्होंने जैन रामायण का वाचन करते हुए भगवान राम के वनवास से जुड़े विभिन्न प्रसंगों की चर्चा की। धर्मसभा में उत्तराध्ययन सूत्र की 21 दिवसीय आराधना के सातवे दिन तत्वचिंतिका डॉ. समीक्षाप्रभाजी म.सा. ने सातवें अध्याय औरभ्रीय की चर्चा पूर्ण करते हुए कहा कि ये आत्मचिंतन अवश्य करें कि सांसारिक सुख भोगने के चक्कर में हम देवगति पाने का मौका तो नहीं छोड़ रहे है। कई बार थोड़ा पाने का लालच करने पर उस समय पछतावा होता है जब पता चला कि हमे जो बहुत कुछ मिल सकता था उसे छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि बूंद के चक्कर में सागर को मत खोओ, जो हाथ में है उसे संभाल लो। आत्मा पर कर्मो का कर्जा चुकाकर इस दुनिया से विदा मत होना। श्रमण संस्कृति का मूल आधार इन्द्रिय विषयों के प्रति अनासक्ति है। हमेशा धर्मात्मा से ज्यादा तर्क पाप करने वाले के पास होते है ऐसे में कोई भी निर्णय करते समय सोच विचार अवश्य करें। जब कर्मो का कर्ज चुकाकर इस दुनिया से विदा होते है तब हमारी आत्मा अनंत सुखों में विलीन हो जाती है। उत्तराध्ययन आराधना के माध्यम से 13 नवम्बर तक उत्तराध्ययन सूत्र के 36 अध्यायों का वाचन पूर्ण किया जाएगा। धर्मसभा में आगम मर्मज्ञा डॉ. चेतनाश्रीजी म.सा., मधुर व्याख्यानी डॉ. दर्शनप्रभाजी म.सा., आदर्श सेवाभावी दीप्तिप्रभाजी म.सा., तरूण तपस्वी हिरलप्रभाजी म.सा. आदि ठाणा का सानिध्य भी रहा। धर्मसभा में अजमेर से पधारे सुश्रावक पदमचंदजी गादिया आदि अतिथियों का स्वागत श्री अरिहन्त विकास समिति द्वारा किया गया। सचंालन युवक मण्डल के मंत्री गौरव तातेड़ ने किया। श्री अरिहन्त विकास समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सुकलेचा ने बताया कि नियमित चातुर्मासिक प्रवचन प्रतिदिन सुबह 8.45 बजे से 10 बजे तक हो रहे है। चातुर्मासकाल में रूप रजत विहार में प्रतिदिन सूर्योदय के समय प्रार्थना, दोपहर 2 से 3 बजे तक नवकार महामंत्र का जाप हो रहा है।

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